Shabe Barat me Qaza E Umri Ada Karne Ke Aasan Tariqe | Shab E Barat Ki Namaz | Nishat Shahid
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*उ़म्र भर की क़ज़ा नमाज़ों को अदा करने का त़रीका़ ( कज़ा ए उ़म्री )*
_ऐसे लोग जिनकी पिछली नमाज़े बाक़ी हैं वो कज़ा नमाज़ें पढ़ें।_
_कज़ा नमाज़ें जल्द से जल्द अदा करना बोहोत ज़रूरी है मालूम नही कि कब मोत आ जाए।_
_आपको फुर्सत का जो भी वक्त मिले उसमें कज़ा नमाज़ें पढ़ते रहें यहां तक के पूरी हो जाएं_
*आलाहज़रत ने कज़ा नमाज़े पढने का आसान तरीका बताकर मुशकिल आसान कर दी*
_इस सिलसिले में आ़ला हज़रत इरशाद फरमायते हैं कि एक दिन की कज़ा 20 रकअतें होती है फज्र मे=2 जोहर मे=4 असर में=4 मगरिब में= 3 ओर इशा में 4फर्ज़ ओर 3 वितर
कुल =20
*उम्र भर क़ज़ा नमाज़ो का हिसाब*
जिसने कभी नमाज़ ही नही पढ़ी हो ओर तोफीक़ हुई ओर क़ज़ा ए उम्री पढ़ना चाहते।हैं तो वो जब से बालिग़ हुआ है उस वक़्त से नमाज़ो का हिसाब लगाए ओर तारीखे बुलूग़(बालिग़ होने की तारीख़) भी नही मालूम तो अहतियात इसी मे है के ओरत की नो साल की उम्र से ओर मर्द की 12 साल की उम्र से नमाज़ो का हिसाब लगा कर पढ़े जल्द पढें न कम पढ़ें
अगर ज़्यादा पढी तो कोई बात नही नफल मे शुमार जाएंगी
*हवाला*= ? फतावा रज़विया,जिल्द 8 सफहा नं. 104
*क़ज़ा करने में तरतीब*- पढने वाले को इख्तियार है कि चाहे तो पहले फज्र की सब नमाज़े अदा करले फिर तमाम ज़ोहर की नमाज़े इसी तरह असर फिर मग़रिब फिर इशा की पढें।
*फर्ज़ नमाज़ बाक़ी हो तो नफिल नमाज़ कूबूल नही होती*- कज़ा नमाज़े नफिल नमाज़ो से ज्यादा क़ीमती हैं ओर अहम हैं इसलिए एसे हमको चाहिए वक़्त पर जो नमाज़ पढतें हैं उसमे नफिल की जगह क़ज़ा नमाज़ें पढ़े ताकि कज़ा जल्द खत्म हो जाए
*कज़ा नमाज़ो की नियत का तरीक़ा*- नियत की मैंने सबसे पहली फ़ज्र की(या पहली ज़ोहर या अस्र की) जो मुझसे कज़ा हुई। वास्ते अल्लाह तआला के, मुंह मेरा काबा शरीफ की तरफ अल्लाहुअकबर (हर बार इसी तर नियत करें)
*पहली आसानी*- अगर चार फर्ज़ पढ़ रहे हैं तो तीसरी ओर चोथी रकात में अल्हम्दू शरीफ न पढ़कर उसकी जगह तीन बार *सुब्हानल्लाह* कहकर रुकूअ में चले जाएं
*दूसरी आसानी*- रुकूअ में तीन बार
“सुबहा- न – रब्बियल् अज़ीम” कहने की बजाए एक बार कहें। इसी तरह सज्दे में तीन बार
“सुब्हा- न – रब्बियल् आला” कहने की बजाए एक बार कहें
*तीसरी आसानी*- अत्तहीयात पढ़ने के बाद *अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यिदिना मुहम्मदियूं व आलिही* पढकर सलाम फेर दें अत्तहीयात के बाद दोनो दुरूद ओर दुआ न पढ़ें
*चोथी आसानी*- इशा की वितर में तीसरी रकअत में दुआए क़ुनूत की जगह तीन या एक बार *रब्बिग़फ़िरली* कहें ओर रुकूअ में चले जाएं
*नोट*- 1.मगर वित्र की तीनों रकाअतों में अल्हम्दु शरीफ ओर सूरत दोनों ज़रूर पढ़ें।
2.मस्जिद में या लोगों की मोजूदगी में अगर वित्र की कज़ा पढ़ें तो तकबीरे क़ुनूत के लिए हाथ न उठाएं
3. नमाज़ के बाकी हिस्से को आम तरीके से पढ़ें
4. सफर की चार रकअत वाली फ़र्ज़ नमाज़े क़स्र ही पढ़ी जाएंगी
5. तरावीह की कज़ा नही होती
Voice – Maulana Shahid Raza Qadri Shamsi Araryavi
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